महाकाल स्तवन
असंभवं संभव-कर्त्तुमुघतं, प्रचण्ड-झंझावृतिरोधसक्षमम् ।  युगस्य निर्माणकृते समुघतं, परं महाकालममुं नमाम्यहम् ।। 
यदा धरायामशांतिः प्रवृद्घा, तदा च तस्यां शांतिं प्रवर्धितुम् । 
विनिर्मितं शांतिकुंजाख्य-तीर्थकं, परं महाकालममुं नमाम्यहम् ।। 
अनाघनन्तं परमं महीयसं, विभोः स्वरुपं परिचाययन्मुहुः । 
यगगानुरुपं च पंथं व्यदर्शयत्, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।। 
उपेक्षिता यज्ञ महादिकाः क्रियाः, विलुप्तप्राय खलु सान्ध्यमाहिकम् ।  
समुद्धृतं येन जगद्धिताय वै, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।। 
तिरस्कृतं विस्मडतमप्युपेक्षितं, आरोग्यवहं यजन प्रचारितुंम् । 
कलौ कृतं यो रचितुं समघतः, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।। 
तपः कृतं येन जगद्घिताय, विभीषिकायाश्च जगन्नु रक्षितुम । 
समुज्ज्वला यस्य भविष्य-घोषणा, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।। 
मृदुहृदारं हृदयं नु यस्य यत्, तथैव तीक्ष्णं गहनं च चिन्तनम् । 
ऋषेश्चरित्रं परमं पवित्रकं, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।। 
जनेष देवत्ववृतिं प्रवर्धितुं, वियद् धरायाच्च विधातुमक्षयम् । 
युगस्य निर्माणकृता च योजना, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।। 
यः पठेच्चिन्त येच्चापि, महाकाल-स्वरुपकम् । लभेत परमां प्रीति, महाकाल कृपादृशा ।। 
महाकाल स्तुति (पघानुवाद) 
असंभव पराक्रम के हेतु तत्पर, विध्वंस का जो करता दलन है । 
नव सृजन पुण्य संकल्प जिसका, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।। 
भू पर भरी भ्रांति की आग के बीच, जो शक्ति के तत्व करता चयन है । 
विकसित किए शांति कुंजादि युग तीर्थ, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।। 
अनादि अनुपम, अश्वर, अगोचर, जिनका सभी भाँति अनुभव कठिन है । 
यद शक्ति का बोध सबको कराया, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।। 
विस्मृत उपेक्षित पड़ी साधना का, जिनने किया जागरण उन्नयन है । 
घर-घर प्रतिष्ठित हुई वेदमाता, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।। 
यज्ञीय विज्ञान, यज्ञीय जीवन, जो सृष्टि पोषक दिव्याचरण है । 
उसको उबारा प्रतिष्ठित बनाया, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।। 
मनुष्यता के दुःख दूर करने, तपकर कमाया परम पुण्य धन है ।   
उज्जवल भविष्यत् की घोषणा की, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।। 
अनीति भंजक शुभ कोप जिनका, शुभ ज्ञानयुत श्रेष्ठ चिंतन गहन है । 
ऋषिकल्प जीवन जिनका परिष्कृत, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।। 
देवत्व मानव मन में जगाकर, संकल्प भू पर अमरपपुर सृजन है ।   
युग की सृजन योजना के प्रणेता, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।। 
महाकाल की प्रेरणा, श्रद्घायुत चित लाय ।  नर पावे सदगति परम्, त्रिवध ताप मिट जाय ।।

Yugadhipati Mahakal Ko Shat-Shat Naman
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