गायत्री स्तवन
ऊँ यन्मंडलं दीप्तिकरं विशालम्, रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम् । दारिद्रय – दुःखक्षय कारणं च, पुनातु मां तत्सवितुवर्रेण्यम् ।। 1 ।।
यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितम्, विप्रैः स्तुतं मानवमुक्तिकोविदम् ।
तं देवदेवं प्रणमामि भर्गं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 2 ।।
यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यं, त्रैलोक्य पूज्यं त्रिगुणात्मरुपम् ।
समस्त तेजोमय दिव्यरुपं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 3 ।।
यन्मण्डलं गूढमति प्रबोधं, धर्मस्य वृद्घिं कुरुते जनानाम् ।
यत् सर्वपापक्षयकारणं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 4 ।।
यन्मण्डलं व्याधि विनाशदक्षम्, यद्घग् यजुः सासमु सम्प्रगीतम् ।
प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वः, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 5 ।।
यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति, गायन्ति यच्चारण सिद्घसंघाः ।
यघोगिनो योगजुषां च संघाः, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 6 ।।
यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितं, ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।
यत्काल कालादिमनादिरुपम, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 7 ।।
यन्मण्डलं विष्णुचतुर्मुखास्यं, यदक्षरं पापहरं जनानाम् ।
यत्कालकल्पक्षयकारणं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 8 ।।
यन्मण्डलं विश्वसृजां प्रसिद्घं, उत्पत्ति रक्षा प्रलयप्रगल्भम् ।
यस्मिन्जगत् संहरतेडखिलं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 9 ।।
यन्मण्जलं सर्वगतस्य विष्णोंः, आत्मा परंधाम विशुद्घतत्वम् ।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 10 ।।
यन्मण्डलं ब्रहृविदो वदन्ति, गायन्ति यच्चारण सिद्घसंघाः ।
यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 11 ।।
यन्मण्डलं वेद विदोपगीतं, यघोगिनां योग पथानुगम्यम् ।
तत्सर्ववेदं प्रणमामि दिव्यं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 12 ।।
गायत्री स्तवन (पघानुवाद)
शुभ ज्योति के पुंज, अनादि अनुपम, ब्रहमाण्ड व्यापी आलोक कर्ता ।
दारिद्रय दुःख भय से मुक्त कर दो पावन बना दो हे देव सविता ।। 1 ।।
ऋषि देवताओं से नित्य पूजित, हे भर्ग भव बन्धन मुक्ति कर्ता ।।
स्वीकार करलो वंदन हमारा, पावन बना दो हे देव सविता ।। 2 ।।
हे ज्ञान के घन त्रैलोक्य पूजित, पावन गुणों के विस्तार कर्ता ।
समस्त प्रतिभा के आदि कारण, पावन बना दो हे देव सविता ।। 3 ।।
हे गूढ़ अंतःकरण में विराजित, तुम दोष-पापादि संहार कर्ता ।
शुभ धर्म का बोध हमको करा दो, पावन बना दो हे देव सविता ।। 4 ।।
हे व्याधि नाशक हे पुष्टि दाता, ऋग्, साम, यजु वेद संचार कर्ता ।
हे भूर्भुवः स्वः में स्व प्रकाशित, पावन बना दो हे देव सविता ।। 5 ।।
सब वेद विद, चारण, सिद्घ योगी, जिसके सदा से है गान कर्ता ।
हे सिद्घ संतों के लक्ष्य शाश्वत, पावन बना दो हे देव सविता ।। 6 ।।
हे विश्व मानव से आदि पूजित, नश्वर जगत् मेंशुभ ज्योति कर्ता ।
हे काल के काल-अनादि ईश्वर, पावन बना दो हे देव सविता ।। 7 ।।
हे विष्णु, ब्रहादि द्घारा प्रचारित, हे भक् पालक, हे पाप हर्ता ।
हे काल-कल्पादि के आदि स्वामी, पावन बना दो हे देव सविता ।। 8 ।।
हे विश्व मंडल के आदि कारण, उत्पत्ति-पालन-संहार कर्ता ।
होता तुम्ही में लय यह जगत् सब, पावन बना दो हे देव सविता ।। 9 ।।
हे सर्वव्यापी, प्रेरक नियन्ता, विशुद्घ आत्मा कल्याण कर्ता ।
शुभ योग पथ पर हम को चलाओ, पावन बना दो हे देव सविता ।। 10 ।।
हे ब्रहृनिष्ठों से आदि पूजित, वेदज्ञ जिसके गुणगान कर्ता ।
सदभावना हम सब में जगा दो, पावन बना दो हे देव सविता ।। 11 ।।
हे योगियों के शुभ मार्गदर्शक, सदज्ञान के आदि संचार कर्ता ।
प्राणिपात स्वीकार लो हम सभी का, पावन बना दो हे देव सविता ।। 12 ।।
सूर्य स्तवन है यह
जवाब देंहटाएंJi haan
हटाएंSurya is Savita
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंJai Gayatri maa
अत्युत्तम्.....मन को शांति प्राप्त हुईा
जवाब देंहटाएं.गायत्री स्तवन पढ़कर मन में दिव्यता और उत्साह जागृत होने लगते हैं बहुत ही आनंद आता है,
जवाब देंहटाएंगायत्री स्तवन पढ़कर मन में दिव्यता और उत्साह जागृत होने लगते हैं बहुत ही आनंद आता है
जवाब देंहटाएंठठपपफ
जवाब देंहटाएंपरम पूज्य गुरुदेव जी द्वारा रचित गायत्री स्तवन मन को प्रसन्न व वाणी को पवित्र करता है
जवाब देंहटाएंक्या सच में यह पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा अनुवादित है?
हटाएंबहुत ही अच्छा प्रयास, जय माँ गायत्री
हटाएंपरन्तु विनम्रतापूर्वक एक निवेदन है कि इसमें कुछ अशुद्धि हैं। कृपया उसे भी यथासम्भव सुधार करें।
👍🙂👌👌🙏🙏🚩
हटाएंVery nice..
जवाब देंहटाएंइसे पढ़कर हाथों से मन को शांति मिलती है मन को बहुत अच्छा लगता है पढ़कर सुनकर आंखें बंद कर कर ऐसा लगता है जैसे मां हमारे सम्मुख है मन को एक अजीब सी शांति मिलती है
जवाब देंहटाएंMa gayatri jap kis mala se sarvotam hai
जवाब देंहटाएंTulsi ki mala shreshth hai
हटाएंजय वेद माता गायत्री 🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंजय गायत्री माँ 🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय मां गायत्री
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.....माँ गायत्री स्तवन
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंJai ho savita devta ki
जवाब देंहटाएंJai ma gaytri
जवाब देंहटाएंMe ma pooja karta hu Sumit
जवाब देंहटाएंVery very nice
जवाब देंहटाएंJay Gayatri Mata
जवाब देंहटाएंUdit ji aur Shreya ji ne hi gaya Hai na bahut Santi milti hai
जवाब देंहटाएंJay ho
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺
जवाब देंहटाएंएक परिजन ने टिप्पणी की है कि यह सूर्य स्तवन है, इसका जवाब दें। इस संबंध में स्पष्टीकरण यह है कि सूर्य का उद्गम गायत्री से ही है, और उसी का वर्णन सम्पूर्ण स्तुति में है। गायत्री को सविता कहा जाता है, जो सूर्य का ही प्रतीक है। इस प्रकार इस स्तुति में मूल रूप से गायत्री की ही प्रार्थना की गई है। इसीलिए इस प्रार्थना को पूज्य गुरुदेव ने गायत्री स्तवन का नाम दिया है।
जवाब देंहटाएं👍👍🙂👌👌🙏🙏🙏🚩
हटाएंवैसे यह प्रश्न 2017 का है, लेकिन मेरे द्वारा आज ही देखने पर उक्त प्रश्न का जवाब दिया गया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंthanks
जवाब देंहटाएंGayatri Stavan gives me mental peace
जवाब देंहटाएंAnnu Vyas
जय गुरु
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