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शनिवार, 7 नवंबर 2009

आरती श्री दुर्गा जी की

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रहृ शिवरी ।। टेक ।।

मांग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को ।
उज्जवल से दोउ नैना चन्द्रबदन नीको ।। जय 0

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै ।
रक्त पुष्प गलमाला कण्ठन पर साजै ।। जय0

केहरि वाहन राजत खड़ग खप्परधारी ।
सुर नर मुनिजन सेवक तिनके दुखहारी ।। जय 0

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति ।। जय 0

शुम्भ निशुम्भ विडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती ।। जय 0

चण्ड मुण्ड संघारे शोणित बीज हरे ।
मधुकैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे ।। जय 0

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी ।। जय 0

चौसठ योगिनी गावत नृत्य करत भैरुं ।
बाजत ताल मृदंगा अरु बाजत डमरु ।। जय 0

तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता ।
संतन की दुखहर्ता सुख सम्पत्तिकर्ता ।। जय 0

भुजा चार अति शोभित खड़ग खप्परधारी ।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ।। जय 0

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योत ।। जय 0

श्री अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ।। जय 0

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