गायत्री स्तुति
ऊँ स्तुता मया वरदा वेदमाता, प्रचोदयन्तां पावमानी द्घिजानाम् । आयुः प्राणं प्रजां पशुं, कीर्ति द्रविणं ब्रहृवर्चसम् । महृं दत्वा ब्रजत ब्रहृलोकम् ।
अर्थ – ( मेरे द्घारा स्तुत, द्घिजों (संसकारी जनों) को भी पवित्र करने वाली हे वरदायिनी वेदमाता (गायत्री) सन्तमार्ग पर प्रेरित करती हुई हमें दीर्घायु, प्राण (साहस), प्रजा (सन्तान-सहयोगी) पशु कीर्ति द्रविण (समृद्घि) ब्रहृवर्चस (ब्रहृज्ञान एवं बल) प्रदान करके आप (अपने) ब्रहृलोक को प्रस्थान करें । )
इस प्रार्थना को मैं बहुत समय से खोज रही थी लेकिन इतनी समय बाद आज यह मुझे मिली है मैं अपने स्कूल टाइम में सुनती थी बोलती थी लेकिन इसे आज पा कर बहुत अच्छा लगा
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